उस पार का सूरज
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Format: | Book |
Published: |
दिल्ली :
ज्ञान गंगा,
2004
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Item Description: | मनु शर्मा जी के इन निबन्धों में उनके व्यक्तित्व की सरसता है, जीवन के अनेक क्षेत्रों के उनके अनुभव की गहराई है, उनके अगाध ज्ञान की गरिमा है। सब कुछ होते हुए भी कुछ भी न ऊपर से ओढ़ दिखाई देते हैं और न बलात ठूँसा ही लगता है। सब कुछ सहज और स्वाभाविक है। पाठकों को कहीं कथा का रस आता है, कहीं सगुंफित विचारों की परत-दर-परत खुलने का आनन्द मिलता है। इसमें लेखन का चिन्तन, विचार आस्था इत्यादि उनकी संवेदनाओं में घुल-मिलकर आए हैं। जीवन की कोई घटना, कोई संदर्भ कोई कथा, कोई प्रतीक या सामान्य-असामान्य व्यक्ति लेखन के मन को उद्धेलित करता है और यही उद्धेलन लेखक के चिंतन का आधार बनता है। इस चिन्तन में उनके निजत्व के साथ देशी-विदेशी विचारक, पौराणिक संदर्भ पुराण-पुरूष, आर्ष ग्रंथ और कभी-कभी अति सामान्य पुरूष उभरता है। इसमें कहीं तत्त्व-चिंतन की गंभीर बातें हैं, कहीं कला का संबद्ध विचार हैं, कहीं पश्चात्य न्याय-दृष्टि से असहमति है, कहीं जीवन मूल्य की प्रतिष्ठा है, कहीं अन्धविश्वासों से असहमति है और कहीं आज के जीवन और समाज की गिरावट है। यानी कहीं गम्भीर और कहीं बड़ी बातें तो कहीं छोटी और सामान्य बातें है। उनके चिन्तन का ताना-बाना बहुत दूर तक फैला है। |
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Physical Description: | 159p. |
ISBN: | 8188139432 |