दिव्या
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Format: | Book |
Published: |
इलाहाबाद
लोकभारती प्रकाशन
2004
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Item Description: | 'दिव्या' यशपाल के श्रेष्ठ उपन्यासों में एक से है। इस उपन्यास में युग-युग की उस दलित-पीड़ित नारी की करुण कथा है, जो अनेकानेक संघर्षों से गुज़रती हुई अपना स्वस्थ मार्ग पहचान लेती है। 'दिव्या' उपन्यास 'अमिता' की भाँति ऐतिहासिक उपन्यास है । यशपाल जी का ‘दिव्या’ एक काल्पनिक ऐतिहासिक उपन्यास है। उन्होंने ने इसे मार्क्सवादी दृष्टिकोण से लिखा है। इस उपन्यास की नायिका दिव्या अनेक प्रकार के संघर्ष झेलती है। यह एक रोमांस विरोधी उपन्यास है। यशपाल जी की दिव्या भगवतीचरण वर्मा की चित्रलेखा से इस मामले में अलग है कि जहां चित्रलेखा को परिस्थितियों के कारण जीवन में कोई राह नहीं सूझती, वही दिव्या में राह की खोज है। ‘दिव्या’ का कथानक बौद्धकाल की घटनाओं पर आधारित है। इस युग की राजनीतिक सामाजिक एवं धार्मिक परिस्थितियों का कुछ ऐसा सजीव चित्रण इन्होंने किया है कि सब कुछ काल्पनिक होते हुए भी यथार्थ-सा प्रतीत होता है। उपन्यास में वर्णित घटनाएँ पाठक के हृदय को गहराई से प्रभावित करती हैं। ‘दिव्या’ जीवन की आसक्ति का प्रतीक है। |
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Physical Description: | 168p. |
ISBN: | 812600262X |