जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन

ग्रियर्सन 1870 के लगभग आई.सी.एस. होकर भारत आये। वे बंगाल और बिहार के कई उच्च पदों पर 1899 तक कार्यरत रहे। फिर वापस आयरलैंड चले गये। भारत में रहते हुए ग्रियर्सन ने कई क्षेत्रों में काम किया। तुलसीदास और विद्यापति के साहित्य का महत्त्व प्रतिपादित करनेवाले वे सम्भवतः पहले अंग्रेज विद्वान थे। हिन्दी क्षेत्र की बोलियों के लोक साहित्य (गीत-कथा) का संकलन और विश्लेषण करनेवाले कुछेक विद्वानों में भी ग्रियर्सन अग्रिम पंक्ति के विद्वानों में थे। |इन्होंने अपनी पुस्तक मैं 952 कवियों का वर्णन किया और इन्होंने सर्वप्रथम हिंदी साहित्य का नामकरण किया इन्होंने आदिकाल को चारण काल कहा|| भारतीय विद्याविशारदों में, विशेषतः भाषाविज्ञान के क्षेत्र में, उनका स्थान अमर है। वे "लिंग्विस्टिक सर्वे ऑव इंडिया" के प्रणेता के रूप में अमर हैं। ग्रियर्सन को भारतीय संस्कृति और यहाँ के निवासियों के प्रति अगाध प्रेम था। भारतीय भाषाविज्ञान के वे महान उन्नायक थे। नव्य भारतीय आर्यभाषाओं के अध्ययन की दृष्टि से उन्हें बीम्स, भांडारकर और हार्नली के समकक्ष रखा जा सकता है। एक सहृदय व्यक्ति के रूप में भी वे भारतवासियों की श्रद्धा के पात्र बने। विकिपीडिया द्वारा प्रदान किया गया